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मनोरंजन से परे: ध्यान के रूप में संगीत

दुनिया में , संगीत को अक्सर केवल मनोरंजन का एक स्रोत माना जाता है। हालाँकि , संगीत में   आकर्षक धुनों और लयबद्ध ताल की सतह के नीचे एक गहन और परिवर्तनकारी शक्ति निहित होती है इसे हम ध्यान की ओर प्रशस्त मार्ग के रूप में भी देख सकते है। गीत की आवाज में उतार - चढाव और लय- ताल जैसी चीजे व्यक्ति   की भावनाओं जैसे   देखभाल और निष्पक्षता के मूल्यों का अनुमान लगाने   में अहम भूमिका निभाती है । गाने के बोल में व्यक्त किया गया गुस्सा, प्यार, ख़ुशी, जैसी भावनाओं से पैदा होने वाला मानसिक रूझान जैसे वफ़ादारी, अधिकार , पवित्रता आदि   लक्षणों के बारे में अनुमान लगाने में अधिक प्रभावी माना गया है...मनोरंजन में अपनी भूमिका से परे , संगीत में हमें हमारी गहरी भावनाओं , विश्वासों और सहानुभूति की भावना से जोड़ने की क्षमता निहित है , जिससे ध्यान का एक अनूठा रूप तैयार होता है जो मानव आत्मा के साथ गूंजता और अंतर्मन के साथ गुथता चला जाता है। पसंदीदा संगीत एवं नैतिक मूल्यों के बीच होता है गहरा सम्बन्ध संगीत हर संस्कृति का अहम हिस्सा है, जो हमारी भावनाओं संवेदनाओं और विश्वास को व्यक...

पधारो म्हारे गाँव में…!


गेहूं के खेतों में कंघी जो करे हवाएं, 

रंग बिरंगी कितनी चुनरिया उड़-उड़ जाए।

हुम्म्म्म अह्ह्ह्ह्हा...

(रेडियो पर बजता यह गाना)


अच्छा यह बताइए गांव के बारे में आपके क्या विचार है?

यह गाना सुनकर आप का मन नहीं करता क्या और लहराते खेतों को निहारने का ?

अच्छा आपने कभी सूरज को प्रातः काल में अपनी लालिमा बिखेरते हुए देखा है?

या इंद्रधनुष को खुले आसमान में अपनी रंग बिखेरते हुए?

पगडंडियों पर चलते हुए क्या कभी आपका पैर भी फैसला है? और हां गौरैया हां हां वही जो लुप्त सी हो गई है क्या आपने उसे अपने आंगन से दाने और तिनको को बटोरते हुए देखा है?

कौवे की कांव-कांव को सुनते ही मेहमान के आने का इंतजार किया है क्या?

सरसों के खेत से काले लुटेरो अरे नहीं पहचाने भवरो को  रस चुराते हुए क्या आपने भी देखा हैं?

क्या आप का मन नहीं करता कुम्हार काका के साथ मिट्टी को रौंदने का... उनके साथ हठखेलिया करने का...

गांव…जहां पशुओं की आवाज ही और चरवाहों का हाकना भी मधुर संगीत सा लगता है।

पशुपालकों का तालाब में अपनी भैंसों के साथ नहाना और सावन में महिलाओं का झूला झूलना ही सार्थक लगता है।

उत्तर से आती हुई ठंडी हवाएं खेतों में फसलों को स्पर्श करते हुए शरीर को छूती है सचमुच परमानंद है यह।


बहूत भाग्यशाली हूँ मै जो ईश्वर ने मुझे स्वर्ग मे रहने का अवसर दिया। जिसकी कल्पना संसार करता हो उसे वास्तविकता मे गहन रूप से देखना शायद हि किसी वरदान से कम हो।


भारतीय संस्कृति रीती रिवाजों का वास आज के इस आधुनिक युग मे भी गाँव मे सरलता से देखने को मिलता हैं।अभी भी गौपालक किसान यहाँ निवास करता है।


 महात्मा गांधी जी ने कहा था-

 '' असली भारत तो गाँव मे बसता हैं।''


वास्तव में....!


भारत प्रधानता गांवों का देश यहां की दो तिहाई से अधिक जनसंख्या गांव में रहती है। आधी से अधिक लोगों का जीवन यहां पर कृषि (खेती) पर निर्भर है।

भारतीय गांव के निवासियों का आय का मुख्य साधन कृषि है। कुछ ग्रामीण पशुपालन एवं कुटीर उद्योगों से अपनी आजीविका चलाते हैं। ग्रामीण जीवन प्राकृतिक शोभा के भंडार होते हैं।

गांव का प्राकृतिक आवरण मनमोहक होता है यहां की प्राकृतिक छटा मन मोह लेने वाली होती है।दूर-दूर तक लहलहाते झूमते हरे-भरे खेतों और चारों ओर फैले रंग बिरंगे फूलों की चादर बिछी चादर ओढ़े फूलो की खुशबू मदहोश करने वाली होती है।


ग्रामीण का जीवन सरल, सहज एवं सभ्य होता है।

ग्रामीण कठोर परिश्रमी उदार हृदयी होते हैं, यह ग्रामीण की प्रमुख विशेषता है। भारतीय किसान सुबह से लेकर शाम तक चाहे तिल -मिलाती धूप हो गर्मी हो या किटकिटाती सर्दी खेतों में कड़ी मेहनत करता है। किसान हमारे पालन करता है जिनसे हमारा भरण पोषण होता है।


आज़ादी के बाद खेती के विकास के साथ-साथ ग्रामीण विकास में भी तेजी आई है। प्रथम पंचवर्षीय योजना 1951 का आदर्श वाक्य "कृषि का विकास" था। आज़ादी के बाद देश का पुनर्निर्माण करना इस योजना का लक्ष्य था।साथ ही देश में उद्योग, कृषि विकास की नीव रखना, लोगों को सस्ती स्वास्थ्य सेवा व कम कीमत में शिक्षा प्रदान करना था, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में विकास संभव हुआ।


ग्राम विकास के साथ ही लगभग सभी किसानों के पास अब अपने हल और बैल है। बहुत से किसानो के पास ट्रैक्टर एवं अत्याधुनिक साधन भी है। ग्राम सुधार की दृष्टि से शिक्षा पर भी पर्याप्त ध्यान दिया जा रहा है।


1960 के दशक में हरित क्रांति एवं श्वेत क्रांति शुरू हुई जिसके दौरान भारत में कृषि को एवं दुग्ध पालन को बढ़ावा मिला। भारतीय कृषि को आधुनिक औद्योगिक प्रणाली में परिवर्तित किया गया एवं 1970 में डेयरी उद्योग एवं दुग्ध उद्योग पशुपालन को बढ़ावा मिला जिससे गांव में सरकारी, सहकारी एवं निजी दुग्ध डेयरी का को स्थापित किया गया।

ग्रामीणों का सरल सहज एवं उदार होना यानी उनकी विशेषता का लोग कई बार दुरुपयोग करते हैं। कई क्षेत्रों में ग्रामीणों को उपेक्षा का शिकार होना पड़ता है- जैसे प्रशासनिक असुविधा, साहूकारी व्यवस्था,समय पर आवश्यक सूचनाओं, योजनाओं की नवीन कार्यों की संपूर्ण जानकारी ना मिल पाना, शिक्षा का अभाव एवं बहुत से अन्य सुविधाएं।


भारतीय किसानों की दयनीय स्थिति का एक प्रमुख कारण ऋण है। सेठ-साहूकार थोडा सा क़र्ज़ किसान को देकर उसे अपनी फसल बहुत कम दाम में बेचने को मजबूर कर देते हैं। इसलिए गांवों में बैंक खोले जा रहे हैं जो मामूली ब्याज पर किसानों को ऋण देते हैं। इसके अतिरिक्त ग्रामीण व्यक्तियों को विभिन्न व्यवसायों का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। हथकरघा और हस्त-शिल्प की ओर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। विचार यह है कि छोटे उद्योगों व कुटीर उद्योगों की स्थापना से किसानों को लाभ हो।


पहले गांवों में यातायात के साधन बहुत कम थे। गांव से पक्की सड़क 15-20 किलोमीटर दूर तक हुआ करती थी। कहीं-कहीं रेल पकड़ने के लिए ग्रामीणों को 50-60 किलोमीटर तक पैदल जाना पड़ता था। अब धीरे-धीरे यातायात के साधनो का विकास किया जा रहा है। फिर भी ग्राम-सुधार की दिशा में अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। अभी भी अधिकाँश भारतीय किसान निरक्षर हैं। भारतीय गांवों में उद्योग धंधों का विकास अधिक नहीं हो सका है। ग्राम-पंचायतों और न्याय-पंचायतों को धीरे-धीरे अधिक अधिकार प्रदान किये जा रहे हैं। इसलिए यह सोंचना भूल होगी कि जो कुछ किया जा चुका है, वह बहुत है। वास्तव में इस दिशा में जितना कुछ किया जाये, कम है।


हमें यह बात नहीं भूलनी चाहिए कि गांवों के विकास पर ही देश का विकास निर्भर है। यहाँ तक कि बड़े उद्योगों का माल भी तभी बिकेगा जब किसान के पास पैसा होगा। थोड़ी सी सफाई या कुछ सुविधाएँ प्रदान कर देने मात्र से गांवों का उद्धार नहीं हो सकेगा। भारतीय गांवों की समस्याओं पर पूरा-पूरा ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है।


खैर!

जब तक कोई इच्छा पूरी नहीं होती वह कल्पना मात्र रहती है।

अपनी कल्पना को वास्तविकता मे बदलने हेतु एक बार

पधारो म्हारे गाँव में…!







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