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मनोरंजन से परे: ध्यान के रूप में संगीत

दुनिया में , संगीत को अक्सर केवल मनोरंजन का एक स्रोत माना जाता है। हालाँकि , संगीत में   आकर्षक धुनों और लयबद्ध ताल की सतह के नीचे एक गहन और परिवर्तनकारी शक्ति निहित होती है इसे हम ध्यान की ओर प्रशस्त मार्ग के रूप में भी देख सकते है। गीत की आवाज में उतार - चढाव और लय- ताल जैसी चीजे व्यक्ति   की भावनाओं जैसे   देखभाल और निष्पक्षता के मूल्यों का अनुमान लगाने   में अहम भूमिका निभाती है । गाने के बोल में व्यक्त किया गया गुस्सा, प्यार, ख़ुशी, जैसी भावनाओं से पैदा होने वाला मानसिक रूझान जैसे वफ़ादारी, अधिकार , पवित्रता आदि   लक्षणों के बारे में अनुमान लगाने में अधिक प्रभावी माना गया है...मनोरंजन में अपनी भूमिका से परे , संगीत में हमें हमारी गहरी भावनाओं , विश्वासों और सहानुभूति की भावना से जोड़ने की क्षमता निहित है , जिससे ध्यान का एक अनूठा रूप तैयार होता है जो मानव आत्मा के साथ गूंजता और अंतर्मन के साथ गुथता चला जाता है। पसंदीदा संगीत एवं नैतिक मूल्यों के बीच होता है गहरा सम्बन्ध संगीत हर संस्कृति का अहम हिस्सा है, जो हमारी भावनाओं संवेदनाओं और विश्वास को व्यक...

कुंजापुरी

Date- 20/4/2023

 

 किताबे बंद करने से कहानी खत्म नहीं होती और कदम थक जाने पर सफर

सफर...कुछ विस्मय, कुछ रोचक, कुछ चुनौतीयों व कठिनाईयों से भरा-पुरा,

एक ऐसा सफर जिसकी ऊंचाई ने मुझे अपने भीतर की ऊंचाई को छूं सकने का विश्वास दिलाया

जहां हर पग, हर क्षण मैंने जीवन की गहराईयों को अनुभव किया

पहाडो पर जीवन कैसा होगा?(निर्भिक सैनिक के जीवन की तरह...) को जाना


खैर एक पल को तो विश्वास सा नहीं हो रहा था लेकिन हां हम लगभग 1,676 मीटर (5,499 फीट) की ऊंचाई पर खड़े थे। इससे पहले मैं अपने कुछ दोस्तो के साथ यहां दिसंबर के माह में आई थी तब यहां का नजारा कुछ और था...हर पर्वत चोटी से टकराकर लौटती हवाएं प्रकृति की संदेशवाहक सी प्रतीत हो रही थी। यह समझना काफी आसान था और नहीं भी कि हमारे दुखते पैर दर्द से या फिर खुशी से कांप रहे थे। सर पर चढते सूरज की गर्मी और भयानक गति से चल रही हवाओं का सामना हम साथ- साथ कर रहे थे...यह बेहद सुखद था। हिमालयी पहाड़ों और गंगा नदी के लुभावने दृश्य प्रस्तुत करती एक पवित्र चोटी कुंजापुरी जो कि श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र होने के साथ ही प्रकृति प्रेमियों के लिए काफी एडवेंचरस भी है।



  हमारी यात्रा शुरू होती है देव संस्कृति विश्वविद्यालय से, समय सुबह के लगभग 9 बज रहे थे और हम सभी जिज्ञासा से भरे थे- कुंजापुरी ट्रेक के लिए । विश्वविद्यालय से ऋषिकेश तक का सफर हमने बस से तय किया। कुंजापुरी के लिए ट्रेक आमतौर पर ऋषिकेश से शुरू होता है, जो उत्तराखंड में एक लोकप्रिय आध्यात्मिक और साहसिक स्थल है। ऋषिकेश से ट्रेक के शुरुआती बिंदु तक पहुँचने के लिए टैक्सी किराए पर ले सकते हैं या स्थानीय बस ले सकते हैं, जो लगभग 25 किलोमीटर (15.5 मील) दूर है। प्रारंभिक बिंदु की यात्रा आपको सुरम्य गांवों और हरे-भरे परिदृश्य के माध्यम से ले जाती है। नरेन्द्रनगर से होकर यहाँ का रास्ता हरे-भरे सघन जंगल से होकर जाता है। उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र में स्थित एक शांत और आध्यात्मिक स्थान कुंजापुरी ट्रेक उत्तराखंड के सबसे प्रसिद्ध ट्रेक में  शामिल है। हर साल दुनिया भर से हजारों लोग इस ट्रेक को तय करते है। इस जगह की खूबसूरती ने कई लोगों को बार-बार लौटने के लिए मजबूर किया है।

लगभग 10 बजे हम सभी निकल पडे थे अपनी मंजिल की ओर, चढता सूरज हमारे साथ था और उसकी बिखरती हुई किरणें इस शानदार रास्ते को और भी सुखदायक बना रही थी। कभी धूप तो कभी छाया में रंग रही थीं। उसी क्षण,मैने सारे भय भुला दिए गए, दैनिक जीवन की सारी चिंताएँ भुला दी ।


 कुंजापुरी का ट्रेक कठिन तो है हि साथ हि रोमांच से भरा हुआ भी इसे पूरा करने में लगभग 3 से 4 घंटे लगते हैं। जाते समय ज्यादा परेशानी तो नही आती क्योंकि पगडंडी व रास्ते अच्छी तरह से परिभाषित है और घने जंगलों, घास के मैदानों और कभी-कभार खड़ी चढ़ाई से होकर गुजरती है। रास्ते में, पहाङी वनस्पति, पक्षियों की विभिन्न प्रजातियों सहित हिमालयी वनस्पतियों और जीवों की सुंदरता का आनंद लेने को मिलता हैं और कभी-कभी लंगूरों, हिरणों या यहां तक कि तेंदुओं, सर्प जैसे वन्यजीवों को भी देख सकते हैं।


जब हम कुंजापुरी के शिखर पर पहुंचते हैं, तो हमें गढ़वाल हिमालय की बर्फ से ढकी चोटियों के मनोरम दृश्य दिखाई देंते है जिनमें स्वर्गारोहिणी, गंगोत्री, बंदरपंच और चौखंबा जैसी प्रसिद्ध चोटियां शामिल हैं। राजसी हिमालय पर मंत्रमुग्ध कर देने वाला सूर्योदय या सूर्यास्त देखना कुंजापुरी की यात्रा का मुख्य आकर्षण है, जो वास्तव में देखने लायक है। प्राकृतिक सुंदरता के अलावा, कुंजापुरी देवी दुर्गा को समर्पित कुंजापुरी देवी मंदिर के लिए भी प्रसिद्ध है। कई आगंतुक मंदिर में आशीर्वाद लेने और उस स्थान की आध्यात्मिक आभा का अनुभव करने के लिए भी कुंजापुरी की यात्रा करते हैं। कुंजापुरी की ट्रेकिंग हिमालय की प्राकृतिक सुंदरता में खुद को डुबोने और क्षेत्र की शांति का अनुभव करने का एक शानदार अवसर प्रदान करती है। 10-12 बजे दो घंटे चलने के बाद, मुझे ऐसा लगा कि आखिरकार हमें वह मिल गया, जिसके लिए हम आए थे।

But it was just a trailer, & the Safar(suffer) starts from here …








कुंजापुरी मां के दर्शन व कुछ समय आराम करने के बाद हम सभी ने ग्रुप में फोटोस् क्लिक कराई कुछ समय आराम किया व नाश्ता किया और इतनी ऊंचाई से उन प्राकृतिक  दृश्यो को अपनी आंखो में कैद किया। शक्ति उपासकों के लिए यह स्थान का विशेष महत्व रखता है क्योंकि कुंजापुरी एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल और उत्तराखंड में एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल है, जो आध्यात्मिकता, प्राकृतिक सुंदरता और लुभावने परिदृश्यों का संयोजन प्रदान करता है। एक पवित्र हिंदू मंदिर है जो भारत के उत्तराखंड के टेहरी गढ़वाल जिले में स्थित है। यह एक पहाड़ी की चोटी पर लगभग 1,676 मीटर (5,499 फीट) की ऊंचाई पर स्थित है, जहां से आसपास की हिमालय की चोटियों और नीचे बहती पवित्र गंगा नदी का मनोरम दृश्य दिखाई देता है।

कुंजापुरी मंदिर

देवी दुर्गा को समर्पित यह मंदिर और इसे 52 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है, जो हिंदू पौराणिक कथाओं में देवी के सबसे महत्वपूर्ण पूजा स्थलों के रूप में प्रतिष्ठित हैं। पौराणिक कथा के अनुसार, यह माना जाता है कि
भगवान शिव की पत्नी सती का जलता हुआ वक्ष भाग (हृदय) इस स्थान पर गिरा था।कुंजापुरी मंदिर कई भक्तों और पर्यटकों को आकर्षित करता है, विशेष रूप से शुभ नवरात्रि उत्सव के दौरान, जब देवी दुर्गा के सम्मान में विशेष समारोह और अनुष्ठान होते हैं। मंदिर एक शांत और आध्यात्मिक माहौल प्रदान करता है, जो इसे ध्यान और योग प्रेमियों के लिए भी एक लोकप्रिय गंतव्य बनाता है।पर्यटक 300 सीढ़ियों वाली सीढ़ी या सड़क मार्ग से कुंजापुरी तक पहुंच सकते हैं। ट्रैकिंग के शौकीन लोग रास्ते में प्राकृतिक सुंदरता का आनंद लेते हुए, मंदिर तक पैदल यात्रा करना भी चुन सकते हैं। कुंजापुरी से सूर्योदय और सूर्यास्त के लुभावने दृश्य विशेष रूप से मंत्रमुग्ध कर देने वाले हैं और कई प्रकृति प्रेमियों को आकर्षित करते हैं।अपने धार्मिक महत्व के अलावा, कुंजापुरी अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए भी जाना जाता है और फोटोग्राफरों के लिए एक बेहतरीन जगह है। मंदिर के स्थान से गंगोत्री, बंदरपंच और चौखंबा जैसी बर्फ से ढकी चोटियों के साथ-साथ विशाल घाटियों और उनके बीच बहने वाली गंगा का शानदार दृश्य दिखाई देता है।

चुंकि हमारे शिक्षको ने पहले भी इस सफर को तय किया है तो उन्होने हमे भी ट्रेकिंग के लिए बखूबी तैयार किया था। ट्रेकिंग शूज़, आरामदायक कपड़े, स्नैक्स और पानी के साथ एक बैक-पैक, सनस्क्रीन, एक टोपी और तेजस्वी नज़ारों को पकड़ने के लिए एक कैमरा जैसी आवश्यक चीज़ों को हम अपने पास रखे हुये थे। और हां हमारी सखि – छङी । मौसम की स्थिति की जांच करने और उसके अनुसार अपने ट्रेक की योजना बनाने की भी सिफारिश की जाती है। ट्रेकिंग का अनुभव नहीं है, तो सुरक्षा और सुविधा के लिए स्थानीय गाइड को किराए पर लेना या ट्रेकिंग समूह में शामिल होना एक अच्छा विचार है। हमारे शिक्षको ने ही हमे पूरे ट्रेक में मार्गदर्शित किया।


 जितना अनुभव और आनंद हमे कुंजापुरी तक के सफर में हुआ उससे कई ज्यादा आनंद हमे नील झरने तक पहुचने मे आया। हम सभी एक खोजी राही जो अपनी मंजील को पाने के लिए ललायित है तलाशते हुये चले जा रहे थे। नील झरने तक का सफर पतली पगडंडियों से गुजरता है, यहां हमे हमारे कई सवालो के जवाब मिलते है। पहाङो पर रहने वाले लोग, उनके वो घर, सुरक्षा के लिए रखे कुत्ते, सीढीदार खेत...आसपास की चोटियों और गांवों आज अपने अनुभवो को लिखते हुये सारे दृश्य आंखो के सामने आ रहे है किस प्रकार कोशिश करते हुये हमने अपने सफर को यादगार बनाया है। जैसे-जैसे दिन चढ़ता गया, आकाश ने अपने रंग बदलते गए, नारंगी के रंगों से एक शानदार नीले रंग में परिवर्तित होने लगा। मैने पहाडो की स्थिरता, सुंदरता और शांति को आत्मसात किया। पहाड़ी हवा और प्राकृतिक रास्ते को स्वर्ग बनाते हैं। कुंजापुरी से नील झरना तक का सफर चुनौतियों से भरा था छोटी कच्ची पगडंडी जिसके एक ओर चोटियां और दूसरी ओर जमीन की गहराइयां, कटीली झाडिया ढलान वाले रास्ते रोमांच से भरा हुआ था। यह लगभग 3 घंटे  का ट्रेक है। जिस प्रकार हम झरने के करीब पहुंच रहे थे कल-कल करती ध्वनि और ठंडी हवाएं हमे अपनी ओर बुला रही थी निकटता का अहसास दिला रही थी।


नील झरना-निर्गड्डू

नील झरने को देखकर जो सुख संतोष के भाव मन में उमड रहे थे शब्दो में बयां कर पाना संभव नहीं है। ऊपर से गिरती दो धाराओं को आपस में मिलते देखना काफी आरामदायक था। उसके ठंडे पानी में पैर डालने मात्र से सारी थकावट दूर हो जाती है। दिन ढल चुका था अतः हम सभी ने रास्ते में खेतो से सब्जीया बटोरी थी और मैगी बनाकर खाने के बाद कुछ दूरी तय करते हुये नीचे आधा किमी बाद कच्ची सड़क से मिलता है। जो आगे लगभग 2 किमी के बाद निर्गड्डू में मुख्य मार्ग से मिलता है इसे तय करते हुये हम बस तक पहुंचे और फिर विश्वविद्यालय।


यह सचमुच बेहद अनुभवी था,

मंजिल को पा लेने पर जो खुशी मिलती है,

रास्ते में जो बाधाएं आती है,पग-पग कुछ नया सिखाती है।

जीवन के राही है हम संभल-संभल कर चलना है।

यूं ही हस्ते मुस्कुराते सफऱ तय करना है...





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