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हां देखा है मैंने...
पतंग की उस डोर को टूटते हुये जो ना सिर्फ पतंग बल्कि मेरी सपनों की उड़ान थी
हां देखा है मैंने...
अपनों का साथ छूटते हुए,उन्हें दूर जाते हुए
उम्मीद की उस लहर को वापस लौटते हुए जिसके स्पर्श मात्र से मेरे सपनों को जीवंत रूप मिल जाता
हां देखा है मैंने....
बारिश की एक बूंद को तरस ने के बाद भी बादलों को लौटते हुए हां देखा है मैंने
जीवन की उस बेल को हिम्मत, हौसला और जुनून के सहारे चढ़ते हुए
और उस बेल की आखिरी पत्ति को (आशा को) सूखते हुए...
हां देखा है मैंने...
पर हारी नहीं हूं मैं
क्योंकि जज्बा ये कायम है और दिल यह जिद्दी है
एक बार फिर सपनों के उस घरोंदे को बनाऊंगी...नया स्वरूप दूंगी।
एक बार फिर नयी पतंग, नयी डोर और नए हौसलों से उड़ान होगी
एक बार फिर अपनों का साथ, लहरो का स्पर्श और बारिश उमंगों से भरी होगी
ना कोई बेल सूखेगी और ना कोई सपना टूटेगा
बस यह छोटी सी कोशिश से
और उसी बेल मे सफलता का सुंदर फूल जन्मेगा प्रस्फुटन होंगे
क्योकिं ज़ज्बा ये कायम है और दिल यह जिद्दी हैं।
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