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मनोरंजन से परे: ध्यान के रूप में संगीत

दुनिया में , संगीत को अक्सर केवल मनोरंजन का एक स्रोत माना जाता है। हालाँकि , संगीत में   आकर्षक धुनों और लयबद्ध ताल की सतह के नीचे एक गहन और परिवर्तनकारी शक्ति निहित होती है इसे हम ध्यान की ओर प्रशस्त मार्ग के रूप में भी देख सकते है। गीत की आवाज में उतार - चढाव और लय- ताल जैसी चीजे व्यक्ति   की भावनाओं जैसे   देखभाल और निष्पक्षता के मूल्यों का अनुमान लगाने   में अहम भूमिका निभाती है । गाने के बोल में व्यक्त किया गया गुस्सा, प्यार, ख़ुशी, जैसी भावनाओं से पैदा होने वाला मानसिक रूझान जैसे वफ़ादारी, अधिकार , पवित्रता आदि   लक्षणों के बारे में अनुमान लगाने में अधिक प्रभावी माना गया है...मनोरंजन में अपनी भूमिका से परे , संगीत में हमें हमारी गहरी भावनाओं , विश्वासों और सहानुभूति की भावना से जोड़ने की क्षमता निहित है , जिससे ध्यान का एक अनूठा रूप तैयार होता है जो मानव आत्मा के साथ गूंजता और अंतर्मन के साथ गुथता चला जाता है। पसंदीदा संगीत एवं नैतिक मूल्यों के बीच होता है गहरा सम्बन्ध संगीत हर संस्कृति का अहम हिस्सा है, जो हमारी भावनाओं संवेदनाओं और विश्वास को व्यक...

बेरोजगारी से बढ़ता नशा, या नशे से बढ़ती बेराजगारी

 

 ''शराबवृत्ती बेकारी को बढ़ावा देती है,

बेकारी की स्थिति शराब पीने की आदत को बढ़ावा देती है...''




शराब पीने से बीमारी, अभाव और गरीबी, बेकारी जैसी अनेक समस्याएं पनपती है। शराब और बेकारी दोनों के मध्य ही अत्यंत घनिष्ठ संबंध है। यह दोनों समस्याएं आज हमारे समाज में जड़ करके बैठी हुई है। व्यक्ति के जीवन में शराब के प्रवेश करने के साथ ही उसके जीवन में पारिवारिक विघटन, व्यक्तित्व विघटन, कार्यक्षमता पर नकारात्मक प्रभाव, दुर्घटना, दुर्व्यवहार जैसी तमाम समस्याओं का स्वतः ही आगमन होने लगता है। शराबवृत्ति और बेकारी आज के दौर की सबसे उभरी हुई समस्याएं हैं। आज हमारे भारत देश का युवा अधिकार एवं रोजगार की समस्या से कुंठित है।

वर्तमान में 10.13 प्रतिशत भारतीय शराब के आदी हैं। अपने जीवन के संघर्षों से मुक्ति पाने के लिए लोग नशे का शिकार हो जाते हैं, मादक द्रव्यों का सेवन करने लगते हैं, मानसिक रूप से विचलित शांति के अभाव में सामान्य रूप से कार्य कर पाना उनके लिए कठिन हो जाता है। यदि हम बेरोजगारी के संदर्भ में सरकारी रिपोर्ट की बात करें तो भारत के 8 राज्य इस समय बेरोजगारी की व्यापक मार झेल रहें हैं। देश की राजधानी दिल्ली में बेरोजगारी 4 महिने में 17 फिसदी तक पहुँच गई वहीं देश के सबसे बड़े क्षेत्रफल वाले राज्य राजस्थान में यह दर 18% है। सबसे प्रमुख राज्यों में माने जाने वाला जम्मू कश्मीर भी इस दौड़ मे 21.6 प्रतिशत के साथ आगे है।

पंजाब एक ऐसा राज्य जहाँ नशे का प्रकोप सबसे ज्यादा है, अतः वहाँ बेरोजगारी भी अलग ही मकाम पर है। सितम्बर में 3.35 से बढ़कर 9.3% पहुँच गई। वहीं मादक पदार्थों की मांग को लेकर माने जाने वाला हरियाणा भी 20.3% के साथ बेरोजगारी की सीमा को पार कर रहा है। इतना ही नहीं विश्व स्वास्थ्य संगठन की माने तो इन बेरोजगार लोगों में से 21.4% लोग शराब का सेवन करते है। वहीं 3% लोग भांग - गांजे आदि के शिकार है। 0.7% लोग अफीम और 0.1% लोग इंजेक्शन से जानलेवा ड्रग्स लेते है। यही सभी लोग बेराजगारी से ग्रसित हैं एवं इसमे युवा-अवस्था से लेकर हर वर्ग के व्यक्ति शामिल है। साथ ही साथ 37% लोग ऐसे भी हैं जो बेरोजगार तो नहीं हैं परन्तु गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने के कारण नशे की लत का शिकार है। इससे यह साफ जाहिर होता है कि नशे की लत बेरोजगारी को और बेरोजगारी नशे की लत को बढ़ावा देती है। 

वर्तमान में अधिकांश लोग बड़ी-बड़ी इच्छाओं के साथ काल्पनिक दुनिया में जीते हैं और जी रहे हैं। जब इन इच्छाओं की पूर्ति और कल्पनाओं में वास्तविकता नज़र नहीं आती तो उदासी और फिर तनाव होने लगता है। इनके लंबे समय से रहने से लोगों को लगता है कि जीवन में कुछ बचा ही नहीं है अतः वे स्वयं को ही नुकसान पहुंचाने लगते हैं एवं मद्यपान, मादक द्रव्य व्यसन जैसी बुरी आदतों का शिकार हो जाते हैं।

पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव, एक बार चखने की चाह, पारिवारिक नियंत्रण का अभाव, नशा करने वाले लोगों से संपर्क, साथियों द्वारा नशे की आनंद को अलौकिक आनंद के रूप में निरूपित किया जाना, जीवन के कठिन क्षणों में दबाव और तनाव को भूलने की कोशिश, बेरोजगारी, व्यक्तिगत निराशा, संबंधों में  खराबी, चिंता, पारिवारिकता का अभाव, बोरियत, थकान और मायूसी से मुक्ति पाने एवं महज मौज मस्ती के लिए भी मादक द्रव्यों का सेवन किया जाता है।

सामाजिक समस्याएं एक दूसरे से संबंधित होती है या फिर यू कहे कि एक सामाजिक समस्या ही दूसरी सामाजिक समस्या को जन्म देती है एवं किसी एक सामाजिक समस्या का निवारण भी दूसरी समस्या की उत्पत्ति का कारण हो सकता है। मादक द्रव्य व्यसन, मद्यपान, शराबवृत्ति बेकारी ; बेरोजगारी को बढ़ावा देती है और बेकारी की स्थिति शराब पीने की आदत को बढ़ावा देती है।

जब भारत में औद्योगिकीकरण एवं नगरीकरण की प्रक्रिया तीव्र हुई तो इसके साथ-साथ शराबवृत्ति भी बढ़ती गई और उसने एक सामाजिक समस्या का रूप भी धारण कर लिया। मादक द्रव्यों का प्रयोग अति प्राचीन काल से विश्व के सभी देशों में होता रहा है। यूरोप के देशों में इसका सेवन दवा के रूप में तथा भारत व चीन में मुक्त रूप से किया जाता है। दक्षिण अमेरिका में मजदूरों में कोकीन के प्रयोगों को  प्रोत्साहित किया जाता रहा है।

प्राचीन काल से ही भारत में लोग मादक द्रव्यों का प्रयोग करते रहे हैं। मादक पदार्थों के सेवन को विशेष सामाजिक एवं धार्मिक उत्सव के अवसर पर सामाजिक स्वीकृति भी प्राप्त थी किंतु तब मद्यपान का प्रकार्यात्मक महत्व था। आर्यो के जीवनकाल में भी मादक पदार्थों के प्रयोगो का वर्णन मिलता है। अथर्ववेद एवं पुराणों में भांग को  विजया शब्द से सन्दर्भित किया गया है। 

वर्तमान में मादक वस्तुओं का सेवन बढ़ा है। आजकल कई लोग फैशन के रूप में भी इसका प्रयोग करते हैं। औद्योगिकीकरण एवं नगरीकरण नियम मानव के लिए अनेक परेशानियां एवं चिंता पैदा की है। अधिकाधिक संपन्न बनने हेतु भी कई लोग इनका चोरी.छिपे व्यापार करते हैं और उनके प्रयोग को बढ़ावा देते हैं।इसके अतिरिक्त निराशापुर्ण जीवन एवं हिप्पी संस्कृति आदि ने भी वर्तमान में मादक द्रव्यों की प्रयोग को बढ़ावा दिया है।

जी हां, हिप्पी संस्कृति -(Hippie Culture)

हिप्पी संस्कृति या फिर यों कहे तो मानवी नैतिक मूल्यों का ह्रास करने वाली एक अनगढ विचारधारा।

हिप्पी संस्कृति एक ऐसी संस्कृति है जो कि अनगढ़ मानसिकता, क्लिष्ठ विचारधारा को संदर्भित करती हैं। ये वे व्यक्तित्व होते है जो कि वास्तविकता से भागने हेतु मादक वस्तुओं का सेवन करते हैं। उसका प्रचार करते हैं। वे हर समय अशांति महसूस करते हैं। ये वे लोग होते हैं जिन लोगों का व्यक्तित्व असामान्य होता है। इनके अतिरिक्त वांछित सफलता न मिलने, परीक्षा में असफल होने, असफल प्रेम संबंध और हीन भावना भी मादक पदार्थों के सेवन की ओर आकर्षित करती है।  

हिप्पी संस्कृति के प्रभाव के कारण आज नगरों में अनेक युवक एवं युवतियां मादक पदार्थों का उपयोग करते हैं। हिप्पिवादी लोग स्वच्छंदता, मनमानी एवं उच्छृंखला के प्रचारक होते हैं। वर्तमान समय में अश्लील साहित्य, सिनेमा, पत्र-पत्रिकाओं एवं व्यापारिक मनोरंजन में नैतिक एवं परंपरागत मूल्यों को तिलांजलि दी गई है। यौन स्वच्छंदता में वृद्धि हुई है। चारों और नैतिक मूल्यों का पतन होता दिखाई दे रहा है।भारतीय लोग विशेषकर युवा वर्ग हिप्पी संस्कृति से बुरी तरह से प्रभावित है।

परन्तु देखा जाए तो यह सब बहाने मात्र ही लगते हैं, आज भी दुनिया में कई ऐसी मिसालें है जो बेरोजगारी के त्रस्त है परन्तु इसके लिए किसी प्रकार के व्यसन का सहारा नहीं लेती है। समाज में काफी लोग हैं जो कि सामाजिक कल्याण, जागरूकता एवं निराकरण हेतु सामूहिक रूप से कोई ना कोई रचनात्मक कार्य प्रयास अवश्य करते हैं। पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव और बेराजगारी की प्रासंगिकता केवल हमारे चित्त और मनोभाव पर निर्भर होती है। यह सारी अवधारणाएँ मनुष्य को आत्मप्रवंचित बना देती है। सभी तथ्य और प्रमाणिकताएँ केवल हमारी मानसिक कमजोरी को दर्शाती है। हम चाहे तो इन व्यसनों से कभी भी छुटकारा पा सकते है। आवश्यकता है तो केवल दृढ़निश्चय और आत्मविश्वास से भरे एक सच्चे मन की।

 



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Absolutely true...A well written work