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भारतीय पोस्टल कार्ड
कागज़
के यादगर टुकड़े जिनका महत्व आज भी है...
घर
पर हमारे बड़े जब भी अपने पुराने पिटारे को खोलते है तो कुछ न कुछ ऐसा मिल जाना
स्वाभाविक है जो हमारे लिए जिज्ञासा का विषय हो सकता है और ख़ुशी का भी क्युंकी कई
बार तो हमे कुछ ऐसा मिल जाता है जो शायद आज के समय में मिल पाया थोडा कठिन हो। आज मुझे अपनी पिताजी की पुरानी डायरी जो पता नहीं कब से खुली न थी उसमे
नजर आया पुराना ख़त...भारतीय पोस्टल कार्ड!
वे चिट्ठिया...वे ख़त और उनकी वो यादे जिनके जरिये लोगो के मन में हमेशा के लिये कैद हो जाती है वैसे देखा जाए इसके विषय में जुडी जानकारी यदि हमे चाहिए तो निश्चित ही हमे किसी ऐसे व्यक्ति से बात करनी होगी जिन्होंने इनके साथ अपने भावों को साझा किया है, इनके साथ-साथ जिया है...
मोबाइल, फोन और इंटरनेट के ज़माने से पहले पोस्टल कार्ड ही लोगो के मध्य बात-चीत का
मुख्य और एक लोकप्रिय साधन थे। पोस्ट कार्ड, वे ख़त जिनकी एक अलग सी सरल किन्तु विशिष्ट Simple and Sober डिज़ाइन होती थी। वे आकार में चौकोर, आयताकार होते
थे और मोटे कागज या कार्ड-बोर्ड से बने होते थे। सामने की ओर अक्सर एक सुंदर छवि
या कलाकृति वाला एक पूर्व-मुद्रित डाक टिकट हुआ करता था, जो भारतीय संस्कृति, इतिहास या स्थलों के
विभिन्न पहलुओं को दर्शाती है। चाहे वह ताज महल की तस्वीर हो, पारंपरिक भारतीय नृत्य शैली हो, या जीवंत उत्सव
का दृश्य हो, इन छवियों ने भेजनेवाले और प्राप्तकर्ता
दोनों के लिए दृश्य आनंद का स्पर्श भी जोड़ दिया और हमारे लिए सहेजने का कारण भी
बन गये, मेरी तरह ही कुछ लोगो ने शौक के तौर पर पोस्ट कार्ड
एकत्र भी किये होगे। और दूसरी तरफ संदेश, पते और भेजनेवाले के विवरण के लिए एक छोटी सी जगह हुआ करती थी।
इस कार्ड पर संदेश लिखने के लिए उपलब्ध स्थान सीमित था, आमतौर पर कुछ पंक्तियाँ। लोगों को सीमित स्थान के भीतर अपने विचारों को प्रभावी ढंग से व्यक्त करने के लिए संक्षिप्त और रचनात्मक रूप से लिखना पड़ता था। इस छोटे से कार्ड पर अपने भावों को उकेरना अपने आप में एक कला थी। लोगों ने सावधानीपूर्वक अपने शब्दों को इस पर गढ़ा यह जानते हुए कि इ स पर लिखा जाने वाला हर एक शब्द, हर विचार और भावना को इस दिए गये कार्ड में सीमित जगह के भीतर व्यक्त किया जाना है।
यह किसी जोहरी के कार्य से भिन्न न था हर एक
शब्द को एक सिमित ढांचे में सावधानि से गढ़ना अदभुद है, यह स्वयं को
संक्षेप में अभिव्यक्त करने, किसी की भावनाओं और
अनुभवों के सार को कुछ चुने हुए शब्दों में कैद
करने का कौशल था। इन हाथ से उकेरे जाने वाले संदेशों की सरलता और आत्मीयता में एक
विशेष आकर्षण हुआ करता था।
भारतीय पोस्टल कार्ड भेजना और प्राप्त करना एक
उत्सुकता से प्रतीक्षित मामला था। हर एक सन्देश का आगमन अपने
साथ उत्साह और प्रत्याशा की भावना लेकर आता था। नियमित लिफाफों के बीच एक रंगीन
कार्ड पाने की खुशी बेजोड़ थी। इसे खोलने से न केवल शब्द बल्कि भेजनेवाले के विचार, भावनाएं और लिखावट भी सामने आना, एक व्यक्तिगत
स्पर्श जोड़ता है।
ये कार्ड कई उद्देश्यों को
पूरा करते थे। उनका उपयोग शुभकामनाएँ देने, समाचार साझा
करने, प्यार व्यक्त करने, निमंत्रण
देने या बस प्रियजनों के साथ जुड़े रहने के लिए किया जाता था। उन्होंने दूरियाँ
मिटाईं और लोगों को करीब लाया, जिससे उन्हें अपने जीवन
की घटनाओं को साझा करने की अनुमति मिली, भले ही वे
कितने भी दूर क्यों न हों। प्रत्येक कार्ड में एक कहानी, एक संदेश होता है जो समय और स्थान के माध्यम से अपने गंतव्य तक पहुंचता
है।
इन्हे प्राप्त करने का
अनुभव संजोए जाने योग्य क्षण हुआ करते होंगे और हो भी क्यों न इसे भेजने वाले ने एक कार्ड को चुनने, हार्दिक संदेश लिखने, टिकट चिपकाने और उसे पोस्ट करने में अपना मूल्यवान समय और प्रयास जो लगाया था। यह एक ऐसे कनेक्शन को दर्शाता है जो आज के युग
के डिजिटल संचार की सीमा से परे है। कार्ड को अपने हाथों में पकड़ने, शब्दों को पढ़ने और कागज की बनावट उसकी खुशबू को महसूस करने से भेजनेवाले
के साथ एक ठोस संबंध बन जाया करते थे ।
त्वरित संदेश और ईमेल के प्रभुत्व वाले युग में, भारतीय
पोस्टल कार्ड की यादें हमें उस समय की याद दिलाती हैं जब संचार एक धीमी, अधिक सोच-समझकर की जाने वाली प्रक्रिया थी। वे हमें धैर्य, प्रत्याशा और एक सीमित स्थान में स्वयं को अभिव्यक्त करने की कला के मूल्य
की याद दिलाते हैं। ये यादें हस्तलिखित संचार की शक्ति और हमारे जीवन पर इसके
स्थायी प्रभाव का प्रमाण हैं।
ये संचार का एक किफायती माध्यम थे, खासकर
उन लोगों के लिए जो पारंपरिक पत्र नहीं खरीद सकते थे। पोस्टल कार्ड की लागत एक
नियमित मुद्रांकित लिफाफे की तुलना में कम थी, जिससे यह
व्यापक आबादी के लिए सुलभ हो गया। पोस्टल कार्ड का उपयोग करना सरल और सुविधाजनक
था। आपको बस जिसे भेजना है उसका पता भरना था, अपना
संदेश लिखना था और उसे मेलबॉक्स में डालना होता था।
लिफाफे या अतिरिक्त डाक शुल्क की कोई आवश्यकता नहीं हुआ करती थी।
आधुनिक संचार विधियों की तुलना में पोस्टल
कार्ड को अपने गंतव्य तक पहुंचने में अधिक समय लगता है। दूरी और डाक सेवा दक्षता
के आधार पर, पोस्ट कार्ड वितरित होने में कई दिन या सप्ताह भी लग जाते हैं। लोग अक्सर
प्राप्त कार्डों को संजोकर रखते थे और उन्हें स्मृति चिन्ह के रूप में रखते थे।
हालाँकि इलेक्ट्रॉनिक संचार के प्रचलन के कारण
आज पोस्टल कार्ड का उतना व्यापक रूप से उपयोग नहीं किया जाता है, फिर भी
वे कई उन लोगो की यादों में एक विशेष स्थान रखते हैं जिन्होंने एन पलों को जिया है
। वे उस सरल समय की यादें ताजा करते हैं जब संचार धीमा था लेकिन शायद अपने तरीके
से अधिक सार्थक था।
अतीत में भारत में पले-बढ़े कई लोगों की यादों
में ये कागज़ के यादगर टुकड़े एक विशेष स्थान रखते हैं। स्टेशनरी के ये साधारण
टुकड़े उस समय संचार और कनेक्शन का एक अभिन्न अंग थे जब तक की प्रौद्योगिकी ने अभी
तक हमारे जीवन पर कब्जा नहीं किया था। भारतीय पोस्टल कार्ड से जुड़ी यादें पुरानी
यादों और सरलता की भावना को उजाग करती हैं।
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